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इन “आत्मनिर्भर” लोगों की कहानी से आप भी हो सकते है प्रेरित

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जब तक आप खुद कुछ करने की चाह नहीं रखते, आपके जीवन में बदलाव की शुरुआत नहीं हो सकती है. याद रखें जहां चाह होती है, वहां राह अपने आप निकल के आती आती है. देश में ऐसे लाखों लोग है जो अपनी किस्मत को कोसते हुए जिंदगी बिता देते है. लेकिन ऐसे भी लोग हमारे देश में है जिन्होंने अपने आत्मविश्वास की मदद से कुछ आरम्भ किया और बन गए “आत्मनिर्भर”. देश की ये कुछ कहानियां आपको भी “आत्मनिर्भर” बनने के लिए प्रेरित कर सकती है.

फ्रेश सलाद बेचकर मेघा बनीं “आत्मनिर्भर”

पुणे की मेघा बाफना ने 3 हजार रुपए से फ्रेश सलाद बेचने का काम शुरू किया था. मेघा 15 सालों से रियल एस्टेट सेक्टर में काम करती थी. 2017 में उन्होंने सोचा कि क्यों न अपने टेस्ट से दुनिया को रूबरू करवाया जाए. बस यही सोचकर उन्होंने एक क्रिएटिव ऐड तैयार किया और उसे वॉट्सऐप पर अपने फ्रेंड्स के ग्रुप में शेयर कर दिया.

पहले दिन 5 पैकेट सलाद का ऑर्डर मिला था. घर में जो मेड काम करने आती थीं, उन्हीं के बेटे को डिलीवरी के लिए रख लिया था. एक हफ्ते तक 6 पैकेट ही जाते रहे, अगले हफ्ते 25 पैकेट जाने लगे. तीसरे हफ्ते में 50 हो गए. फिर अगले 5 महीने तक यही चलता रहा. सोशल मीडिया के जरिये मुझे सीधे 60 से 70 नए क्लाइंट मिल गए और करीब 150 कस्टमर्स बन गए. धीरे-धीरे कस्टमर बढ़े तो प्रॉफिट बढ़ने लगा. लॉकडाउन के पहले तक 200 कस्टमर्स हो गए थे और महीने की बचत 75 हजार से 1 लाख रुपए तक थी. उल्लेखनीय है कि चार साल में इस स्टार्टअप से उन्होंने करीब 22 लाख रुपए जोड़े. लॉकडाउन के पहले तक 10 डिलीवरी बॉय और 9 महिलाओं को उन्होंने काम दिया था.

इंजीनियरिंग छोड़ स्ट्रॉबेरी की खेती से “आत्मनिर्भर” बनें दीपक

झारखंड के पलामू जिले में एक गांव है हरिहर गंज। इस गांव में रहने वाले दीपक मेहता इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर पिछले चार साल से स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. आज दीपक हर साल करीब 40 लाख रु कमा रहे हैं। पहली बार 2017 में उन्होंने लगभग तीन एकड़ जमीन पर स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की थी. दीपक बताते हैं, उन्होंने हरियाणा में पहली बार स्ट्रॉबेरी देखी थी. जानकारी जुटाई और फिर हिम्मत करके अपने गांव में खेती शुरू की. घर-परिवार से लेकर आस-पड़ोस सब कहते थे कि गलत कर रहे हो. इंजिनीरिंग की नौकरी छोड़ के खेती क्यों कर रहे हो. बर्बाद हो जाओगे.

24 साल के दीपक अपने परिवार के साथ गांव में ही रहते हैं. वो बताते है, 2017 में शादी हो गई। जहां काम करता था वहां बहुत दबाव रहता था. पूरी मेहनत से काम करता था लेकिन कोई खुश नहीं था. यहां तक कि हंसना भी भूल गया था. इन सभी वजहों से गांव लौटा और खेती शुरू की. 2018 में 6 एकड़ और 2019 में 12 एकड़ जमीन लीज पर लेकर स्ट्रॉबेरी की खेती की. फरवरी के आखिर में लॉकडाउन लग गया और इस वजह से दीपक के लगभग 19 लाख रुपए अभी भी मार्केट में फंसे हुए हैं. वो बताते हैं, इस समस्या के बावजूद भी उन्हें 40 लाख रुपए की बचत हुई. आज उनके इस बिजनेस से 60 लोगों को रोजगार मिला है.

टिफिन बिजनेस से सुल्तान और रोहित बनें “आत्मनिर्भर”

12 साल से वोडाफोन में काम कर रहे सुल्तान खान और उनके दोस्त रोहित उस लिस्ट में शामिल हो गए जिन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. उन्होंने अयोध्या में घर से ही टिफिन का बिजनेस शुरू किया और अब दो साल बाद वो तीन रेस्त्रां के मालिक हैं. सुल्तान और रोहित की जोड़ी के अब अयोध्या-फैजाबाद में दो हज़ार वर्गफीट में तीन रेस्त्रां हैं. उन्होंने तीन दर्जन लोगों को रोजगार दिया है जिनमें कई लोग ऐसे हैं जो उनके साथ ही काम किया करते थे और बेरोजगार हो गए थे.

सुल्तान कहते हैं- उन्होंने अपने टिफिन सेंटर का नाम रखा ‘घर जैसा’. शुरुआत मुश्किल थी. उन्होंने उनकी पूरी सेविंग काम शुरू करने में लगा दी थी. शुरुआत में रिस्पॉन्स अच्छा नहीं था. सेविंग खत्म हो रही थी. टेलीकॉम कंपनी में सुल्तान और रोहित दोनों ही अच्छी सैलरी पर काम करते थे. सुल्तान कहते हैं, असली खुशी इस बात की है कि हमने दर्जनों लोगों को रोजगार दिया.” ‘दिल्ली और पंजाब में सोया चाप काफी फेमस है. लेकिन, अयोध्या-फैजाबाद में कोई सोया चाप नहीं बेच रहा था. हमने सोया चाप में मुगलई टेस्ट देने का प्रयोग किया. ये फ्यूजन फूड लोगों को पसंद आया.’

सुल्तान और रोहित दोनों को ही फूड इंडस्ट्री का कोई अनुभव नहीं था. ये कमजोरी ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बन गई. उन्होंने इस इंडस्ट्री को समझने के लिए खूब रिसर्च की. कहते हैं, ‘हमने यूट्यूब से रेसिपी देखीं, उन्हें ट्राई किया, और उनमें अपनी ओर से कुछ बदलाव किए जो लोगों को बहुत पसंद आए.”


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