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सालाना उर्स के लिए सज उठीं बाबा ताजुद्दीन की दरगाह

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नागपुर ब्यूरो : सर्वधर्म समभाव के प्रतीक सूफी संत हजरत बाबा सैयद मोहम्मद ताजुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह का सालाना उर्स नागपुर के ताजाबाद शरीफ, उमरेड रोड में इस साल कोविड संक्रमण की वजह से बिना जायरीनों के ही संपन्न हुआ. बता दे हर साल उर्स के दौरान यहां देश के कोने कोने से जायरीन पहुँचते थें. हालांकि इसके बावजूद भी बाबा के दरबार की रंगत कम नहीं हुई हैं. रोशनाई में नहाया हुआ दरबार देखते ही बनता है.

उल्लेखनीय है कि इस बार कोविड-19 महामारी की वजह से बाबा ताजुद्दीन के 98वें सालाना उर्स के उपलक्ष्य में तमाम कार्यक्रम औपचारिकता स्वरूप किये गए. जायरीनों के लिए ताजाबाद परिसर बंद ही रखा गया था. बाबा ताजुद्दीन के 98वें सालाना उर्स के उपलक्ष्य में हालांकि बाबा का दरबार रोशनाई में नहाया नजर आया.

हजरत बाबा ताजुद्दीन औलिया बीसवीं सदी के न केवल चमत्कारिक बाबा थे बल्कि वे साम्प्रदायिक सौहार्द की ऐसी जीती-जागती मिसाल थे कि मुसलमान होते हुए भी लाखों हिंदू उनके मुर्शिद हैं. हजरत बाबा ताजुद्दीन का जन्म विदर्भ के नागपुर शहर से 15 कि.मी. दूर कामठी गांव में 21 जनवरी, 1861 के रोज हुआ था. उनके पिता सैयद बद्रूद्दीन फौज में सूबेदार थे व उनकी माता मरियम वी मद्रासी पलटन के सूबेदार मेजर शेख मीरांसाहब की पुत्री थीं.

कहानी बाबा के जीवन की

  1. कहा जाता है कि हजरत बाबा ताजुद्दीन औलिया जन्म के समय से ही असाधारण थे. बाबा के पुरखे अरबस्तान के बाशिन्दे थे. इन्हीं में से उनके वालिद काम काज के लिए कामठी आये व नौकरी मिलने पर कामठी में ही बस गये. बाबा जब एक वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहान्त हो गया था लेकिन 9 वर्ष की उम्र पूरी होते ही उनकी मां भी चल बसी. नानी ने ही इन्हें पाल पोसकर बड़ा किया.
  2. बताया जाता है कि हजरत बाबा ताजुद्दीन औलिया का अंतिम संस्कार ‘ताजाबाद’ में किया गया व वहीं उनकी समाधि बनाई गई जो बाबा की पवित्र कब्र के रूप में जानी जाती है. ताजाबाद में देशभर से हजारों मुर्शिद उनके दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन हुजूर के तीनों मुकामातों ताजाबाद शरीफ, शकरदरा शरीफ व वाकी शरीफ (तपस्याभूमि) में जाकर उनका फैसला हासिल करते हैं. उस प्रकार अपनी जीवन लीला से हजरत बाबा ताजुद्दीन औलिया ने संसार को रूहानियत की नई रोशनी दी. बाबा की मजार पर प्रतिवर्ष उर्स मनाया जाता है.

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