उद्धव ठाकरे दिखते हैं शांत लेकिन कड़े फैसले लेने में भी हैं महारत हासिल
मुंबई पोलिटिकल डेस्क : महाराष्ट्र के 19वें मुख्यमंत्री और शिवसेना के प्रमुख उद्धव बालासाहब ठाकरे का आज 61वां जन्मदिन है. उद्धव ठाकरे की तुलना अक्सर उनके पिता बाला साहेब ठाकरे से करते समय राजनीति के जानकार कहते है कि वे भले ही बाला साहब ठाकरे की तरह तेज-तर्रार वक्ता न हों लेकिन किसी मुद्दे पर अपना स्टैंड लेना और उस पर कायम रहने के मुकाबले में वे भी पीछे नज़र नहीं आते. उद्धव ही हैं जिन्होंने शिवसेना और ठाकरे परिवार को महाराष्ट्र की राजनीति में किंग मेकर से किंग की भूमिका में पहुंचा दिया है. उद्धव बालासाहब ठाकरे, दिखते हैं शांत लेकिन कड़े फैसले लेने में भी उन्हें महारत हासिल हैं.
पार्टी को कई मुश्किलों से निकाला
27 जुलाई 1960 को जन्मे उद्धव ठाकरे अपने पिता बाल ठाकरे के साए में रहकर राजनीति की. पिता की मृत्यु के बाद उन्हें शिवसेना की कमान मिलीं जिसके बाद उन्होंने पार्टी को कई मुश्किलों से निकालकर एक बार फिर महाराष्ट्र में सत्ता की उस शिखर तक पहुंचा दिया जिसके लिए शिवसेना के कार्यकर्ता दिन-रात सपना देखते थे. महाराष्ट्र में कांग्रेस और बीजेपी के नेता ये मां चुके थे कि अब शिवसेना का वक़्त ख़त्म हो गया है और राज ठाकरे की पार्टी मनसे का प्रभाव भी बढ़ रहा था लेकिन उद्धव ने जिस संयम से इस पूरे वक़्त पार्टी को संभाला उससे सभी हैरान रह गए. उद्धव ने महाराष्ट्र में शिवसेना का चेहरा उग्र हिंदुत्व वाली पार्टी के अलावा अब विकास के लिए सोचने वाली पार्टी का बना दिया है. एक ऐसी पार्टी जो करप्शन के खिलाफ सख्त एक्शन ले सकती है.
साल 2003 में संभाली थी सेना की कमान
उद्धव को साल 2003 में शिवसेना की कमान मिली थी. उनकी छवि राज ठाकरे जैसे प्रखर वक्ता की नहीं थी और बाला साहेब ने भी राज की जगह उन्हें ही चुना था. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भले ही शांत नज़र आएं लेकिन कई मौकों पर साफ़ कर चुके हैं कि “मेरे हिंदुत्व को आपके सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है.” साल 2020 के अक्तूबर माह में मंदिरों को खोलेने को लेकर राज्यपाल ने पत्र लिखकर मुख्यमंत्री से पूछा था, “क्या आपने हिंदुत्व छोड़ दिया है और धर्मनिरपेक्ष हो गए हैं?” तो उद्धव ने अपने जवाबी पत्र में यही जवाब उन्हें भी दिया था. उद्धव साफ़ कर चुके हैं कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार में है लेकिन वह अपने ‘हिंदुत्व’ के एजेंडे पर हमेशा कायम रहेगी.
कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बीजेपी के खिलाफ भी बोले
शिवसेना साल 2014 के बाद से ही भाजपा की राजनीतिक और आर्थिक नीतियों के खिलाफ मुखर रही थी. शिवसेना ने नोटबंदी के फैसले पर भी अपना विरोध जताया, तो मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन चलाने के निर्णय को लेकर भी मतभेद साफ़ नज़र आए. जानकारों के मुताबिक भाजपा ने शिवसेना की बात सुनना बंद कर दिया था ऐसे में उद्धव बालासाहब ठाकरे ने सही मौके का इंतजार किया और एहसास दिलाया कि महाराष्ट्र में शिवसेना ही बड़ा भाई है. उद्धव ने राकांपा सुप्रीमो शरद पवार से बातचीत की और गठबंधन बनाकर राजनीति की इस शतरंज पर भाजपा को मात दे दी.
शिवसेना का सीएम बनाकर ही मानें
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरी शिवसेना को जब कम सीटें मिलीं तो उद्धव ने किंगमेकर की भूमिका त्याग कर सीधे राजनीति में उतरने की ठान ली. वजह भी ख़ास थीं, राज्य में बीजेपी लगातार आगे बढ़ रही थी और ये वोटबैंक सिर्फ कांग्रेस नहीं बल्कि शिवसेना का भी था. हालांकि सरकार बिना शिवसेना के बननी मुमकिन नहीं थी. ऐसे में उद्धव ने स्टैंड लिया और बीजेपी के सामने स्पष्ट कर दिया कि मुख्यमंत्री तो शिवसेना का ही बनेगा. उद्धव ठाकरे के सबसे करीबी नेता और राज्यसभा सांसद संजय राऊत ने भाजपा से मुख्यमंत्री पद की मांग कर दी. शिवसेना ने साफ़ कर दिया कि वह राज्य में बीजेपी के छोटे भाई कि तरह नहीं रहने वाली. लेकिन भाजपा नहीं मानी और उद्धव ने सारा राजनितिक खेल ही बदल दिया. आखिरकार सरकार बनी तो शिवसेना का ही सीएम बना.