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Election | भाजपा के लिए पृथक विदर्भ का मुद्दा तो सिर्फ चुनावी है…

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इस समय विदर्भ में विधान परिषद के नागपुर स्नातक क्षेत्र के चुनाव के लिए जोरशोर से प्रचार जारी है. वैसे तो शिक्षा क्षेत्र की यह सीट होने से ज्यादातर मुद्दे शिक्षा से जुड़े है. लेकिन चूंकि मामला विदर्भ क्षेत्र का भी है इसलिए पृथक विदर्भ का विषय फिर एक बार इस चुनाव की वजह से चर्चा में आने लगा है. ये बात अलग है कि मुख्य राजनीतिक दल होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा पृथक विदर्भ को लेकर बात करना टाला जा रहा है. जबकि इसी चुनाव में उम्मीदार नितिन रोंघे का समर्थन कर रहे विदर्भवादी संगठन पृथक विदर्भ के मुद्दे पर बात कर रहे है. विदर्भ के मुद्दे को इन संगठनों ने इस चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना दिया है. ऐसे में भाजपा की मुश्किलें बढ़ने लगी है.
संदीप जोशी

असल में भारतीय जनता पार्टी ने कई वर्षों तक पृथक विदर्भ के मुद्दे को भुनाया है. इसी मुद्दे को जनआंदोलन का रूप देकर भाजपा की महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी भी हुई थी. विदर्भ से जीती हुर्ई सीटों के ही बदौलत नागपुर से देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाया गया. विदर्भ के कद्दावर नेता होने की वजह से ही नितिन गडकरी केंद्र की भाजपा सरकार में महत्वपूर्ण पद पर मंत्री है. लेकिन सत्ता में वापसी के बाद से ही भाजपा नेताओं ने पृथक विदर्भ का राग आलापना बंद कर दिया है. अब इस मुद्दे पर वे बात करने से भी कन्नी काटते है. जबकि इस चुनाव में विदर्भवादी संगठनों की वजह से ये मुद्दा चर्चा में लौट आया है.

नितिन रोंघे

सोशल मीडिया में तो यूजर्स भाजपा नेताओं से पृथक विदर्भ पर अपनी बात से पलट जाने पर हमला बोलने लगे है. राज्य में सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा अपने वादे के अनुसार पृथक विदर्भ राज्य का गठन नहीं कर सकी. उसकी ये नाकामी अब स्नातक क्षेत्र के चुनाव में उनके उम्मीदवार संदीप जोशी के लिए भी गले की हड्डी बन रही है. संदीप जोशी शिक्षा से लेकर रोजगार तक की बात कर रहे है. मौजूदा राज्य सरकार की नाकामियां गिना रहे है. लेकिन वे पृथक विदर्भ राज्य की बात अपने भाषणों से ही गोल कर जाते है. वहीं भाजपा के बड़े नेता भी विभिन्न कार्यक्रमों में अपनी उम्मीदवार के लिए वोट मांगते समय पृथक विदर्भ राज्य पर बोलना तक पसंद नहीं कर रहे है.

यदि विदर्भवादी संगठनों द्वारा इस मुद्दे को हवा दी जाती रही और विदर्भ के शिक्षित मतदाताओं ने पृथक विदर्भ के विषय को गंभीरता से ले लिया तो संदीप जोशी की राह में ये रोड़ा बन सकता है. वहीं नितिन रोंघे द्वारा लगातार ये मुद्दा उठाए जाने से उन्हें इसका सीधा फायदा मिल सकता है.


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